सैर दूसरे दरवेश
दिन तो गुज़रा। जब शाम हुई ,मुझे एक ख्वाजा सिरा महल में बुला कर
ले गया। जाकर देखा तो अकाबिर आलिम और फ़ाज़िल
साहब शरा हाज़िर है। मैं भी उसी जलसे में जाकर बैठा की इतने में दस्तरख्वान बिछाया
गया ,और खाने अक़साम अक़साम (तरह तरह) के शीरीं
और नमकीन चुने गए। वे सब खाने लगे और मुझे भी दे दे कर शरीक किया .जब खाने से फरागत हुई ,एक दायी अंदर से आयी और
बोली की बहरवार कहा है ? उसे बुलाओ। यासायलु ने वही हाज़िर किया। उसकी सूरत बहुत मर्द
आदमी की सी ,और बहुत सी कुंजिया रुपये सोने की
कमर में लटकती हुई ,सलाम अलैक कर कर।
मेरे पास आकर बैठा। वही दायी कहने लगी की ए बहरवर
! तूने जो कुछ देखा है तफ्सील से बयां
कर।
बहरवार ने यह दास्तान कहनी शुरू की और मुझसे मुखातिब हो कर बोला : ए अज़ीज़ हमारी बादशाह ज़ादी की सरकार में हज़ारो गुलाम है की सौदागरी के काम में हाज़िर रहते है। उनमे से मैं भी एक अदना खाना ज़ाद हु। हर एक मुल्क की तरफ लाखो रुपये असबाब और जींस दे कर रुखसत फरमाती है। जब वह फिर वहा से आता है ,तब उससे उस देस का अहवाल अपने हुज़ूर पूछती है और सुनती है। एक बार यह इत्तेफ़ाक़ हुआ की यह कम तरीन तेजारत की खातिर चला ,और शहर नीम रोज़ में पंहुचा ,वह के बाशिंदो को देखा तो सबका लिबास सियाह है ,और हर दम नाला व आह है ,ऐसा मालूम होता था की उनपर कुछ बड़ी मुसीबत पड़ी है। इसका सबब जिससे मैं पूछता ,कोई जवाब मेरा न देता। इसी हैरत में कई रोज़ गुज़रे। एक दिन जैसे ही सुबह हुई ,तमाम आदमी छोटे बड़े बड़े ,लड़के ,बूढ़े ,गरीब गनी ,शहर के बाहर चले ,एक मैदान में जाकर जमा हुए। और उस मुल्क का बादशाह भी सब अमीरो को साथ लेकर सवार हुआ ,और वहा गया ,तब सब बराबर क़तार बांध कर खड़े हुए।
मैं भी उनके दरमियान खड़ा तमाशा देखता था पर यह मालूम होता था ,की वे सब किसी का इंतज़ार खींच रहे है। एक खड़ी के आरसे में दूर से एक जवान परी ज़ाद ,साहब जमाल ,पन्दरह सोला बरस का सिन व साल ,गुल और शोर करता और कफ मुँह से जारी ,ज़र्द बेल की सवारी ,एक हाथ में कुछ लिए ,मुक़ाबिल (सामने) ख़ल्क़ अल्लाह के आया ,और अपने बैल पर से उतरा ,एक हाथ में नाथ और एक हाथ में नंगी तलवार लेकर दो जानो बैठा ,एक गुल अंदाम ,परी चेहरा उसके हमराह था। उसको उस जवान ने वह चीज़ जो हाथ में थी ,दी। वह यतीम लेकर ,एक सिरे से हर एक को दिखाता जाता था। लेकिन यह हालत थी की जो कोई देखता था ,बे अख्तियार दहाड़ मार कर रोता था .इसी तरह सबको दिखाता और रुलाता हुआ ,सबके सामने से होकर ,अपने खावंद के पास फिर गया।
उसेक जाते ही वो जवान उठा और उस गुलाम का सर तलवार से काट कर ,और सवार हो कर ,जिधर से आया था ,उधर को चला गया। सब खड़े देखा किये। जब नज़रो से गायब हुआ ,लोग शहर की तरफ फिरे। मैं हर एक से उस माजरे की हक़ीक़त पूछता था , रुपयों का लालच देता और खुशामद मन्नत करता ,की मुझे ज़रा बताओ की यह जवान कौन है ? और उसने यह क्या हरकत की , और कहा से आया और कहा गया हरगिज़ किसी ने न बतलाया और न कुछ मेरे ख्याल में आया। यह ताज्जुब देख कर ,जब मैं यहाँ आया और मलका के रु बा रु इज़हार किया ,तबसे बादशाह ज़ादी भी हैरान हुई। और उसकी तहक़ीक़ करने की दो दिली हो रही है। लिहाज़ा मेहर अपना यही मुक़र्रर किया है की जो शख्स इस अजूबे की कमा हक़्क़ा खबर लाएगा ,उसको पसंद फरमाए। और वही मालिक सारे मुल्क का माल मलका का हो जाये।
यह माजरा तुम
सबने सुना। अपने दिल में गौर करो ,अगर तुम उस जवान की खबर ला सको ,तो क़सद मुल्क नीम
रोज़ का करो और जल्द रवाना हो। नहीं तो इंकार
कर कर। अपने घर की राह लो। मैंने जवाब दिया की अगर खुदा चाहे तो जल्द उसका अहवाल सर से पाव तक दरयाफ्त कर कर
,बादशाह ज़ादी के पास आ पहुँचता हु ,और कामयाब होता हु। जो मेरी क़िस्मत बुरी है तो उसका कुछ इलाज नहीं।
लेकिन मलका उसका क़ौल क़रार करे की अपने कहने से न फिरे। और बिलफेल एक अंदेशा मुश्किल
मेरे दिल में खलश कर रहा है ,अगर मलका गरीब नवाज़ी
और मुसाफिर परवरी से हुज़ूर में बुलाये ,और परदे के बाहर बिठला दे ,और मेरे इल्तमास
अपने कानो सुने ,और उसका जवाब अपनी ज़ुबान से फरमा दे। तो मेरी खातिर जमा हो और मुझसे
सब कुछ हो सके। यह मेरे मतलब की बात ,मामा
ने रु बा रु उस परी पीकर के अर्ज़ की। बारे क़द्रदानी की राह से हुक्म किया की उन्हें
बुला लो।
दायी फिर आयी मुझे अपने साथ ,जिस महल में बादशाह ज़ादी थी ,ले गयी। क्या देखता हु की दो रो यह सफ बांधे दस्त बदस्ता सहेलिया और ख्वासे और उर्दा बैगनिया ,ततुर्किनिया ,कष्मीर्निया ,जवाहर में जुडी ओहदे लिए खड़ी है। इंद्र का अखाड़ा कहु या परियो का उतारा ?बे इख़्तियार एक आह बे खुदी से ज़ुबान तक और कलेजा तिलकने लगा ,पर अपने आपको थामा। उनको देखता भालता और सैर करता हुआ आगे चला ,लेकिन पाव सो सो मन के हो गए। जिसको देखु ,फिर ये न जी चाहे की आगे जाऊ। एक तरफ चिलवान पड़ी थी और मोंधा जड़ाऊ बिछवा रखा था। और एक चौकी भी संदल की बिछी थी। दायी ने मुझे बैठने की इशारत की। मैं मोंढे पर बेथ गया और वह चौकी पर। कहने लगी : लो अब जो कहना है ,सो जी भर कर कहो।
मैंने मलका की खूबियों की और अद्ल व इंसाफ ,दाद देहश की पहले तारीफ की फिर कहने लगा : जबसे मैं इस मुल्क की सरहद में आया ,हर एक मंज़िल में यही देखा की जा बा जा मुसाफिर खाने और इमारते आली बनी हुई है। और आदमी हर एक ओहदे के लगे हुए है। की खबर गिरी मुसाफिरों और मोहताजों की करते है। मुझे भी तीन तीन दिन हर एक मुक़ाम में गुज़रे। चौथे रोज़ जब रुखसत होने लगा ,तब भी किसी ने ख़ुशी से ना कहा की जाओ। और जितना असबाब उस मकान में था। शतरंजी ,चांदनी ,कालीन,सीतल पाटी ,मंगल कोटी ,दिवार गिरी ,परदे ,चिलवने ,नम गिरे ,छप्पर खट मा गिलाफ ,तोशक ,बाला पॉश ,सेज बंद ,चादर तकिये ,गुल ततकिये ,देग ,देख्चे ,पतीले ,रकाबी ,तश्तरी ,चमचे ,बकावली ,कफ गीर सर पोषी ,तूरा पोश ,आब खोरे ,,सुराही ,लग्न पान दान ,गुलाब पोश ,ऊद सोज़ ,आफ़ताब। सब मेरे हवाले किये की यह तुम्हारा माल है। चाहो अब ले जाओ नहीं तो एक कोठरी में बंद कर कर अपनी मुहर करो ,जब तुम्हारी ख़ुशी होगी ,फिरते हुए ले जाओ। मैंने तो युही किया। पर यह हैरत है की जब मुझसे फ़क़ीर तनहा से यह सुलूक हुआ ,तो ऐसे गरीब हज़ारो तुम्हारे मुल्को में आते जाते होंगे ,पस अगर हर एक से यही मेहमान दारी का तौर रहता होगा ,तो मुबल्लिग बे हिसाब खर्च होते होंगे। पस इतनी दौलत की जिसका यह सिर्फ है ,कहा से आयी ,और कैसी है ? अगर गंज क़ारून हो ,तो भी वफ़ा न करे। और ज़ाहिर में अगर मलका की सल्तनत पर निगाह कीजिये तो उसकी आमदनी फ़क़त बावर्ची खाने के खर्च को भी किफ़ायत न करती होगी ,और खर्चो का तो क्या ज़िक्र है। और जो तो वहा जा पहुँचू। अगर इसका बयांन मलका की ज़बान से सुनु तो खातिर जमा हो ,क़स्द मुल्क नीम रोज़ का करू,और जो तो वहा जा पहुँचू ,अहवाल दरयाफ्त करके मलका की खिदमत में बा शर्त ज़िन्दगी बारे दीगर हाज़िर हो ,अपने दिल की मुराद।
यह सुन कर मलका ने अपनी ज़ुबान से कहा की ए जवान ! अगर तुझे आरज़ू कमाल है दरयाफ्त करे ,तो आजके दिन भी मुक़ाम कर ,शाम को तुझे हुज़ूर में तलब कर कर ,जो कुछ अहवाल इस दौलत बे ज़वाल का है , बे कम व कास्त कहा जायेगा। मैं यह तसल्ली पाकर अपने इस्तेक़ामत का मकान पर आकर मुन्तज़िर था की कब शाम हो ,जो मेरा मतलब तमाम हो। इतने में ख्वाजा सिरा ,कई को गोशे तो रु पोश पड़े ,भवे को सर पर धरे ,आकर मौजूद हुआ और बोला की हुज़ूर से अलूश खास इनायत हुआ है। इसको नोश फरमाए ,जिस वक़्त मेरे सामने खोले ,बू बास से ,माग मुअत्तर हुआ और रूह भर गयी। जितना खा सका ,खा लिया ,बाक़ी उन सभो को उठा दिया और शुक्र नेमत कह भिजाया। बारे ,जब आफताब ,तमाम दिन का मुसाफिर ,थका हुआ गिरता पड़ता अपने महल में दाखिल हुआ और महताब दीवान खाने में अपने मुसाहिबों को साथ लेकर निकल बैठा ,उस वक़्त दायी आयी और मुझसे कहने लगी की चलो बादशाह ज़ादी ने याद फ़रमाया है।
मैं उसके हमराह हो लिया ,खिलवत ए ख़ास में ले गयी। रौशनी का यह आलम था की शब् क़द्र को वहा क़द्र न थी। और बादशाही फर्श पर मसनद मुगररक बिछी ,मुरसा का तकिया लगा हुआ ,और उस पर एक शामियाना मोतियों की झालर का ,जड़ाऊ इस्तादो पर खड़ा हुआ और सामने मसनद के जवाहर के दरख्त फूल पात लगे हुए सोने की कियारियो में जमे हुए। और दोनों तरफ दस्त रास्त और दस्त चप ,शागिर्द पेशे और मुजराई ,दस्त बदस्ता बा अदब आंखे नीची किये हुए हाज़िर थे। और तवाइफ़ और गाने ,साज़ो के सुर बनाये मुन्तज़िर। यह समा और यह तैयारी को देख कर ,अकल ठिकाने न रही। दायी से पूछा की दिन को वह ज़ेबाइश और रात को यह आराइश ,की दिन ईद और रात शब् बरात कहना चाहिए बल्कि दुनिया में बादशाह सात को यह ऐश नसीब न होगा। हमेशा यही सूरत रहती है ? दायी कहने लगी की हमारी मलका का जितना कारखाना तुमने देखा ,यह सब इसी दस्तूर से जारी है ,इसमें हरगिज़ खलल नहीं ,बल्कि अफज़ाओ है। तुम यहाँ बैठो मलका दूसरे मकान में तशरीफ़ रखती है ,जाकर खबर करू .
दायी यहाँ कह कर गयी ,और उन्ही पाव फिर आयी ,की चलो हुज़ूर में ,यह उस मकान में जाते ही भौचक रह गया। न मालूम हुआ की दरवाज़ा कहा और दिवार किधर है। उस वास्ते की आईने चारो तरफ लगे ,और उनकी परवाज़ो में हीरे और मोती जड़े हुए थे। एक का अक्स एक में नज़र आता ,तो यह मालूम होता की जवाहर का सारा मकान है। एक तरफ पर्दा पड़ा था, उसके पीछे मलका बैठी थी। वह दायी परदे से लग कर बैठी ,और मुझे भी बैठने को कहा ,तब दायी मलका के फरमाने से इस तौर पर बयान करने लगी की सुन ए जवान दाना ! सुल्तान इस अकलीम का बड़ा बादशाह था ,उनके घर में सात बेटिया पैदा हुई। एक रोज़ बादशाह ने जश्न फ़रमाया ,ये सातो लड़किया सोला सिंगार बारह अभरन ,बाल बाल गंज मोती पिरो कर बादशाह के हुज़ूर में खड़ी थी। सुल्तान के कुछ जी में आया ,तो बेटियों की तरफ देख कर फ़रमाया : अगर तुम्हारा बाप बादशाह न होता ,और किसी गरीब के घर तुम पैदा होती ,तो तुम्हे बादशाह ज़ादी और मलका कौन कहता ?खुदा का शुक्र करो की शहज़ादिया कहलाती हो ,तुम्हारी यह सारी खूबी मेरे दम से है।
छह लड़किया एक
ज़ुबान हो कर बोली की जहा पनाह फरमाते है ,बजा है ,और आप ही की सलामती से हमारी भलाई
है। लेकिन यह मलका जहा सब बहनो से छोटी थी
,पर अक़्ल व शयूर में इस उम्र में भी गोया सबसे बड़ी थी ,चिपकी खड़ी थी ,इस गुफ्तुगू में बहनो की शरीक न
हुई। इस वास्ते की कलमा कुफ्र का है। बादशाह ने नज़र गज़ब से उनकी तरफ देखा और कहा :क्यू बीबी ! तुम कुछ न
बोली। उसका का क्या मतलब है ? तब मलका ने दोनों
हाथ अपने रुमाल से बांध कर अर्ज़ की कि अगर जान की अमान पाव और तक़सीर माफ़ हो।
तो यह लड़की अपने दिल की बात गुज़ारिश करे ,हुक्म
हुआ की कह ,क्या कहती है ? तब मलका ने कहा क़िब्ला आलम ! आपने सुना है की सच्ची बात कड़वी लगती है सो इस वक़्त मैं अपनी
ज़िन्दगी से हाथ धो कर अर्ज़ करती हु ,और जो
कुछ मेरी क़िस्मत में लिखने वाले ने लिखा है
,उसका मिटाने वला कोई नहीं किसी तरह नहीं टलने का।
जिस बादशाह अलल अत्लाक़ ने आपको बादशाह बनाया ,उन्ही ने मुझे भी बादशाह ज़ादी कहवाया। उसकी क़ुदरत के कारखाने में किसी का इख़्तियार नहीं चलता। आपकी ज़ात हमारी वली नेमत और क़िब्ला व काबा है ,हज़रात के क़दम मुबारक को अगर सुरमा करू तो बजा है ,मगर नसीब हर एक के साथ है। बादशाह यह सुन कर तैश में आये ,और यह जवाब दिल पर सख्त गिरा मालूम हुआ ,बेज़ार हो कर फ़रमाया : छोटा मुँह बड़ी बात ! अब उसकी यही सजा है की गहना पाता जो कुछ इसके हाथ गले में है , उतार लो ,और एक मियाने में चढ़ा कर ,ऐसे जंगल में की नाम व निशान आदमी आदम ज़ाद का न हो ,फ़ेंक आओ। देखे इसके नसीबो में क्या लिखा है।